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धुंधली तरसी अंखियां निशदिन रस्ता देखें तेरा

आज दिनांक ११.१२.२३ को प्रदत्त स्वैच्छिक विषय पर प्रतियोगिता वास्ते मेरी प्रस्तुति
शीर्षक
धुंधली तरसी अंखियां निशदिन रस्ता देखें तेरा :
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न जाने ज़िन्दगी मे क्यों शाम सी घिर आई  है,
तुम बिन ज़िन्दगी मे साजन हमने ये सज़ा पाई है।

कहां गये वो कसमे वादे,कहां गयीं मेरी फ़रियादें,
आ कर ले जाओ तुम शूल सी चुभती अपनी यादें।

तुम बिन नहीं कोई आराइश,तमस भरा ये जीवन है,
गीत मेरे अवगीत हो गये अवकीर्ण हुआ मेरा मन है।

डरती हूं मै जीवन-पथ से रस्ता‌ बहुत घनेरा,
धुंधली तरसी अंखियां निशदिन रस्ता देखें तेरा ।

तन्हा मुझे बना कर तुमने जिजीविषा मेरी हर ली,
तरणी मेरी इस जीवन की तिरोहित तुमने कर दी।

मेरे चांद तारों के नभ में तुम पयोद बन आए,
अभी चापल्य जवानी ही थी तुम अवसाद ले आए।

विकांक्षा भरी मेरी ज़िन्दगी अप्रतिभ हो के रहती,
निर्निमेश हो मेरी आंखें शून्य‌ में ताका करतीं।

अब साम्राज्य फैला है‌ निशि का दूर त‌क नहीं सवेरा,
धुंधली तरसी अंखियां निशदिन रस्ता देखें तेरा ।

आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़

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4 Comments

बेहतरीन अभिव्यक्ति

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Gunjan Kamal

13-Dec-2023 05:43 PM

👏👌

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Rupesh Kumar

11-Dec-2023 06:29 PM

शानदार

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